मंगलवार, 24 मई 2011

ईमान का तीसरा स्तम्भः अल्लाह के अवतरित पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान है।

अल्लाह ने अपने बन्दों की मार्गदर्शन के लिए समय समय पर छोटी बड़ी पुस्तकें अपने दुतों और सन्देश्ठाओं पर नाज़िल (अवतरित) किया, उन पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान रखा जाए कि वह सम्पूर्ण पुस्तकें सत्य हैं। अल्लाह ने इन पुस्तकों को सन्देष्टाओं पर उतारा था जिस समुदाए पर वह ग्रंथ उतारी गई थी, उस समुदाए के लिए वह पुस्तक रोश्नी और सही मार्गदर्शन के लिए काफी था। इसी तरह उस सम्पूर्ण पुस्तकों पर विश्वास रखा जाए जिसे सन्देष्टाओं पर उतारा गया था और जिसका नाम हमें बताया गया है या नही बताया गया है। जैसा कि अल्लाह तआला का आदेश है।

يا أيها الذين آمَنوا آمِنوا بالله ورسوله و الكتاب الذي نزل على رسوله والكتاب الذي أنزل من قبل ومن يكفر بالله وملائكته و كتبه و رسله و اليوم الآخر فقد ضل ضلالا بعيدا " - النساء: 136



इस आयत का अर्थः “ ऐ लोगो जो ईमान लाऐ हो, अल्लाह और उसके रसूल और उस किताब (पवित्र कुरआन) पर जिसे उसने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों के ऊपर ईमान लाओ जो इस से पहले उतारी गयी और जिस ने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन को नही मानते तो वह बहुत दूर बहक गया ” ( सूराः निसा,136)

इन्सानी बुद्धी को स्वार्थ और घमंड तथा इच्छा घेरे हुए होते हैं और जिस तरह चाहे नचाते हैं। यदि उसको खुला छोड़ दिया जाए और जिस तरह ईच्छा हो करे तो वह सत्य रासते से भटक जाएगा और अपने लिए हाणि के पद को चुन लेगा और वास्तविक सफलता को छोड़ देगा । इस लिए अल्लाह तआला ने मानव के मार्गदर्शन के लिए पुस्तकें उतारी ताकि मानव का सही मार्गदर्शन हो सके और उनको लाभदायक वस्तु के करने का आदेश दे और हाणि कारण वस्तु से रोके,
उस में से महत्वपूर्ण किताबें निम्नलिखित हैं।

(1) सुहुफ, इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(2) तौरात, मूसा अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(3) ज़बूर, दाऊद अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(4) इन्जील, ईसा अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(5) कुरआन, मुहम्मद स0 अ0 स0 को दिया गया ।

तो इन सब किताबों पर विश्वास रखना प्रत्येक मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। परन्तु कुरआन से पहले जितनी भी पुस्तकें उतारी गयी। उन के अनुयायियों ने उस किताब का सही खयाल नही रखा, उसकी सुरक्षा पर धयान नही दिया जिसके कारण बीते समय के साथ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उस में परिवर्तन करते रहे, इसी लिए इन सम्पूर्ण किताबें को अल्लाह तआला ने मन्सूख करके उसकी जगह कुरआन को उतारा और स्वयं इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले ली और अब कुरआन हमेशा हमेश के लिए सुरक्षित होगया जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।

" إنا نحن نزلنا الذكر وإنا له لحافظون " - الحجر:9

इस आयत का अर्थः “ रहा यह जिक्र( कुरआन) तो इसको हम्ने उतारा है और हम ही खुद इसके रक्षक हैं।”

किताबों पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ दया और कृपा कि उसने प्रत्येक समुदाए में पुस्तक उतारी जो उन लोगों के लिए मार्गदर्शनीय हो,
(2) अल्लाह की हिक्मत का प्रकट होना कि उसने इन किताबों में प्रत्येक समाज के लिए उचित धर्म उतारा जो उस समयानुसार अनुकूल था और सब से अन्तिम में पवित्र कुरआन उतारा जो सर्व मनुष्य के लिए मार्गदर्शनीय और मुक्तिमार्ग है।
(3) इस महान पुरस्कार पर हम इश्वर का शुक्र अदा करें, और इसी अनुसार अमल करें।

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