बुधवार, 8 जून 2011

ईमान का छटा स्तम्भः भाग्य , क़िस्मत , नसीब की अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान है।



भाग्य, क़िस्मत , नसीब का अर्थात यह कि अल्लाह ने अपने पुर्व कालिन ज्ञान और अपनी हिक्मत के बिना पर इस श्रेष्टी की रचना की है, और इन सब को लौट कर अल्लाह की ओर जाना है, अल्लाह तआला ही सम्पूर्ण वस्तु का स्वामी है और सब पर उस की शक्ति है, जो चाहता है करता है। उसने अपने ज्ञान से सर्व मनुष्य के भाग्य में अच्छा या बुरा लिख दिया है अब वैसा ही होगा जैसा कि अल्लाह तआला ने लिख दिया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है,
ما اصاب من مصيبة في الأرض ولا في السماء ولا في أنفسكم إلا في كتاب من قبل أن نبرأها- إن ذلك على الله يسير – لئلا تاسوأ على ما فاتكم ولا تفرحوا بما أتاكم - الحديد:32

इस आयत का अर्थातः " कोइ भी मुसीबत, संकट, परिशानी एसी नही है जो धरती में या तुम्हारे ऊपर उतरती है और हम ने उस को पैदा करने से पहले एक किताब में लिख न रखा हो, एसा करना अल्लाह के लिए बहुत ही सरल कार्य है, ताकि जो कुछ भी हाणी तुम को पहुंचे उस पर तुम्हारा दिल छोटा न हो, और जो कुछ भी लाभ तुम को पहुंचे उस पर तुम फूल न जाओ " ( सुरः अल- हदीदः32)

भाग्य के चार दर्जे हैं, इन चारों पर ईमान लाना जरूरी है,

(1) अल्लाह के अज्ली इल्म पर ईमान लाना जो कि प्रति वस्तु को सम्मिलित और घेरे हुए है।
ألم تعلم أن الله يعلم ما في السموات و الأرض - الحج:70

" क्या तुम जानते नही कि आकाश और धरती की हर चीज़ अल्लाह के ज्ञान में है, सब कुछ को एक किताब में अंकित किया है, अल्लाह के लिए यह बहुत सरल है " ( सूरः अल-हज्जः70)

(2) अल्लाह ने अपने इल्म की बिना जो नसीब में लिख दिया है, उस पर ईमान लाया जाए। अल्लाह तआला का कथन है,
ما فرطنا في الكتاب من شيئ - الأنعام: 38
अर्थः " हम्ने भाग्य के लेख में कोइ कमी नहीं छोड़ी है। " (सूरः अल-अन्आमः38)
रसूल स0 अ0 स0 ने फरमाया
" كتب الله مقادير الخلائق قبل أن يخلق السموات و الأرض بخمسين ألف سنة "
अर्थः " अल्लाह तआला ने आसमानों और धरती के रचने से पचास हज़ार वर्ष पुर्व ही सर्व मानव के भाग्य को लिख दिया है। "

(3) हर चीज़ अल्लाह की इच्छा और चाहत से होती है। बिना उस के अनुमति के एक पत्ता भी नही हिल सकता, इस बात पर कठोर विश्वास रखा जाए। अल्लाह तआला फरमाता है।
و ما تشاؤون إلا أن يشاء الله رب العالمين - التكوير: 29
आयत का अर्थः " और तुम्हारे चाहने से कुछ नही होता जब तक सारे संसार का स्वामी अल्लाह न चाहे " सूरः अत्तक्वीरः 29)
(4) अल्लाह ही सम्पूर्ण वस्तु का उत्तपादक तथा रचनाकर्ता है। उसने प्रति वस्तु को मनुष्य के प्रयोग के लिए पैदा किया और मनुष्य को अल्लाह की इबादत के लिए पैदा किया है। अल्लाह तआला का कथन है।
الله خالق كل شيئ وهو على كل شيئ وكيل - الزمر:62
आयत का अर्थः " अल्लाह हर चीज़ का पैदा करने वाला है और वही हर चीज़ पर निगह्बान है। " सूरः अज़्ज़ुमरः 62)

भाग्य तीन प्रकार के हैं।

(1) वह भाग्य जिस के खत्म करने या लौटाने की शक्ति बन्दो को नही है। उदाहरण के तौर पर आकाश तथा धरती में आने वाले संकट, भूकंभ, वर्षा का होना, जीविका का कम या अधिक प्राप्त होना, संतान का जन्म, मानव को रोग या स्वस्थ में लिप्त होना तथा मानव का देहांत पाना, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
" كل نفس ذائقة الموت "
इस आयत का अर्थः " प्रति जीवधारी को मृत्यु का स्वाद चखना है। "
" إن ربك يبسط الرزق لمن يشاء ويقدر "
इस आयत का अर्थः " निःसंदेह आप का पालन पोशक जिस के लिए चाहे रोज़ी अधिक करता है, और जिस के लिए चाहे रोज़ी कम करता है। "

(2) इस भाग्य को समाप्त करना मानव की शक्ति से बाहर है। परन्तु मानव इस की मार्गदर्शन कर सकता है और इस की तेजी को कम करने की शक्ति है, उदाहरण के तौर पर , इन्सानी भावना, मेल-जोल, वातावरण, और पुर्वज से प्राप्त परंपरा और रीति-रेवाज आदि.
भावनाओं और मानव अवश्यक्ता को बिल्कुल समाप्त करने का आज्ञा हमें नही दिया गया है और नही यह हमारी शक्ति में है। बल्कि इन चीज़ों का अच्छा मार्गदर्शण करना ही हमारे लिए मुक्ति का कारण बनेगा और अनुमित वस्तु का प्रयोग हमारे लिए लाभदायक होगा। जैसा कि अल्लाह तआला के नबी मोहम्मद स0 अ0 स0 ने फरमाया तुम अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना भी पुण्य का कार्य है।
मानव लोगों के साथ मैल-जौल कर रहना पसन्द करता है। अल्लाह तआला ने भी इसी का आज्ञा दिया है कि हम अच्छे , सच्चे लोगों को सोथ रहें , मूल आदर्श के मालिक व्यक्ति को साथी बनाया जाए और बुरे लोग, करपटाचारी लोगों से दूर तथा अलग थलग रहा जाऐ, नही तो तुम भी गलत समझे जाओगो,
" يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله وكونوا مع الصادقين "
" ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो, और सच्चे लोगों के साथ रहो "
तो इन चीजों के उपस्थित होने पर बदला नही है बल्कि इन चीजों के अच्छे या बुरे प्रयोग पर बदला देगा। जो जैसा कर्म करेगा उसी प्रकार उसे उपकार या सज़ा दिया जाऐगा।

(3) वह कार्य जिस के करने या न करने का मानव को इख्तियार और शक्ति दी गई है। चाहे तो वह कार्य करे और चाहे तो नहीं करे, इसी भाग्य पर मानव से प्रश्न किया जाएगा, अल्लाह की आज्ञाकारी पर पुरस्कार मिलेगा और अवज्ञाकारी पर डंडित किया जाएगा। अल्लाह तआला अपने आज्ञा के अनुसार जीवन बिताने के लिए मानव के बीच अपने ग्रन्थों और रसूलों को भेजा और इन रसूलों और पुष्तकों के माध्यम से आदेश दिया कि मानव इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अनुसार जीवन गुज़ारे, जो लोग इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अनुसार जीवन गुज़ारेंगे वह स्वर्ग में प्रवेश होंगे और जो लोग इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अवज्ञाकारी करेंगे उन्हें नरक में डालेगा। इसी भाग्य के प्रति मानव से बाज़ पुर्स किया जाएगा।
जिन लोगों ने अपराध किया ,पाप किया, परन्तु अल्लाह के साथ शिर्क न किया होगा तो आशा है कि अल्लाह चाहे तो उसे क्षमा कर देगा या चाहे तो कुछ सजा दे।

भाग्य के अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) मेहनत और उपाए करते हुए अल्लाह पर विश्वास रखा जाए, क्यों कि मेहनत का फल अल्लाह की चाहत पर निर्भर करता है।
(2) हृदय को हर हाल में शान्ति प्राप्त होगी। यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ तो भी अल्लाह का शुक्र अदा किया जाए और यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त न हुआ तो भी अल्लाह के दी हुई भाग्य पर सन्तुष्टी मिलेगी।
(3) यदि मेहनत का अच्छा और उत्तम फल मिला है तो इस पर न इतराए और घमंड न करे बल्कि अल्लाह का एह्सान माने और अल्लाह का शुक्र अदा करे।
(4) किसी अप्रिय वस्तु के प्रकट होने या लक्ष्य को प्राप्त न करने पर या मेहनत का अच्छा फल न मिलने पर ग़म या परेशान न हो, बल्कि इस बात पर परसन्न हो कि यह अल्लाह का निर्णय था और अल्लाह का निर्णय हो कर ही रहेगा, इस पर सब्र करे, और अल्लाह से पुण्य की आशा रखे। तो हृदय को शान्ति मेलेगी और बहुत सारी परेशानी घुटन से मुक्ति मेलेगी।

भाग्य पर सही तरीके विश्वास न होने के कारण बहुत से नुक्सानात उठाने पड़ते है।
कुछ लोग भाग्य को सुधारने के चक्कर में जादुगरों, ठोंगी बाबाओं और ठगों के पास जा कर अपना धनदौलत नष्ठ करते हैं, कभी कभी अपनी इज़तो को दागदार करवा लेते हैं, ऐसे लोगों का सब से पहले अल्लाह पर विश्वास कम होता है, मेहनत से जी चुराते या अपने किये गये तदबीरों के प्रति सही से जाइज़ा नही लेते हैं और नुक्सान उठाते है,
सितारों पर विश्वास रखना, या हाथ देख कर भाग्य बताना , यह सब मुर्ख बनाने का काम है और अल्लाह के साथ शिर्क भी होगा और अल्लाह के साथ शिर्क ऐसा पाप है जो बिना अल्लाह से तौबा किये माफ नही होता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर उद्धरण ...बिना उसकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिल सकता ! पत्ता - पत्ता हाल हमारी जाने है !

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